मंगलवार, 26 अगस्त 2025

थे हम भी सिंधी, मगर हिन्दू ,हमें बे घर पड़ा होना

हमारी संस्कृति,  मिट्टी बनी, जो थी कभी सोना  ! 
बड़ी जिल्लत सी लगती है,यूँ अपने,देश को खोना  ! 

जलाया सिंध को जिसने,सभी थे सिंधी,पर मुस्लिम,
थे हम भी सिंधी, मगर हिन्दू ,हमें बे घर पड़ा होना  ! 

यहाँ हम  खुश हैं   सशरीर, पर महसूस होता है, 
हमारी आत्मा पे जख्म और टूटा सा इक कोना  ! 

कि जैसे मछलियों को, रेत दो ,पानी हटा कर के, 
करो महसूस  छटपटाहट वो , फिर जिंदगी ढ़ोना  ! 

जिन्होंने लूटा, मारा था ,पड़ोसी थे सभी सारे, 
कोई भी बाहरी न था, इन्हीं बातों का है रोना  ! 

अभी भी खेल भारत में  है जारी, टोपी वालों का, 
हश्र तुम सिंधियत का देख,सम्भलो और समझो ना !
------------------------- तनु थदानी






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