थोड़ी शर्म , झिझक थोड़ी सी, बंधन सारे खोल रही है !
जीवन भर का लेखा जोखा,एक स्वांग सा उम्र का धोखा,
बस के मेरी धड़कन में वो ,मुझमें खुशियाँ घोल रही है !
आह से ले कर अहा के रस्ते, साथ रही वो रोते हंसते,
मेरी दोनों आंखों में, झिलमिल तारों सी डोल रही है !
मेरे घर आंगन माँ बापू ,संग ही गुथ गई इक माला सी,
मेरी जीवन संगी की तो, हर बातें अनमोल रही है!
------------------------------------- तनु थदानी