रविवार, 9 दिसंबर 2012

जिन्दगी hey eshwar-3 (tanu thadani) हे ईश्वर -3 { तनु थदानी }



मिली   तभी  से  सर  पे  मेरे , मौत की चुनरी  रही ओढ़ती !
वही  जिन्दगी   संग  रही  ओं  , रिश्ते -  नाते  रही  जोड़ती ! 

खुशियों  वाली  चादर  खुद पे , मैंने  तह  कर  के रक्खी थी ,
काश ! जिन्दगी  उस  चादर  को , नहीं छेड़ती ,नहीं मोड़ती !

जिसको अपना  मान के  भीतर , पाल  रहा  था मैं  दीवाना ,
वही  जिन्दगी  मेरी   उम्र   के , घर   के   ईटे   रही  तोड़ती  !

पूरे   ही  सम्मान  से  लेना ,  देती  जो   भी  यहाँ  जिन्दगी ,
लेने  पर  जो  आ  जाये  तो ,  साँसे   तक भी  नहीं  छोड़ती ! 

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

बस एक निवेदन है hey eshwar-3 (tanu thadani) हे ईश्वर -3 (तनु थदानी )

असंभव   होती  हमारी  जागरूकता 
हमारी   नीयत    के खोखलेपन  का  सबूत  है !

कुकुरमुत्ते   की  मानिंद  उगी  टोपियों  की  जड़ 
यकानक  राजनीतिक   क्यूँ हो   गई ?
हमारे  बच्चे  की  भूख  तो  सामाजिक   थी ना 
फिर  क्यूँ  बन  गई  नारा ?
अनशन  हुयें  , हड़ताल  हुई  ,समझौते  हुये ,
खिलाड़ी  अपने   खेल से  पुर्णतः  संतुष्ट  थें कि 
किसने   किसका  खेल  बिगाड़ा !

कल   फिर  वोटिंग  होगी 
नहीं मालूम  कौन  जीतेगा ,
पर मालूम   है  की  हमारी   हार होगी !

खूब    घूमते  हो  ना ,
कभी  खुद  के  पासपोर्ट  पर 
अपने  दिल  का  वीजा  लो 
पूरी यात्रा  में  निः शुल्क  है  आना- जाना 
बस  एक  निवेदन  है -
यात्रा  में   अगर  भारत  नजर  आये  
तो  उसे  जरुर   बाहर  लाना !!  

चलो दूरियों से एक समझौता करते हैं hey eshwar-3 (tanu thadani) हे ईश्वर -3 { तनु थदानी }


हमने  बड़े  करीने  से  
सजा  रखी  हैं  अपनी  दूरियाँ !

कभी आत्ममुग्धता  की  छत  पे 
अकेले  बैठे लाखों - करोड़ों  तारों  को  देखते  हैं 
कभी नीचे  आ लाखों - करोड़ों  के  हुजूम के जश्न   में  हो जाते  है  शामिल 
लेकिन  कोई  नहीं  होता  किसी  के  साथ !

दिल से  निः हत्थे  हम 
हँसते  - रोते  हैं  नाप - तौल  कर ,
 क्या कोई   बता  पायेगा  कि   जाना  कहाँ  है ??

दोमुहें  पैजामे  को  तर्कों  की  डोरी  से  बाँध 
पूरी  करते  हैं  जीवन-  यात्रा !
मुहावरे  सा  व्यक्तित्व  ले  कर  जीते  है 
छोड़  जाते  हैं  दुनिया  से  विदा   होने से  पहले 
अनबूझे  अक्षरों  पे  किस्म-किस्म  की  मात्रा !

चलो  दूरियों  से  एक  समझौता  करते  हैं -
सर्वप्रथम  मैं  को  मारते  हैं  फिर  हम  मरते  हैं !
समय  की  बलिष्ठ  भुजाओं के  आलिंगन  से  मुक्त 
इक दूजे  का  हाथ  थाम  चलने  की कोशिश  करते  है  !

प्रिय !  हम  अब  भी  जीते  हैं 
तब भी  जीयेगे ,
इक दूजे  की  साँसों  में  ही  हो  जायेगे  अमर 
जब  खुद  ही  खुद  की  दूरियों  को  पीयेगें !!   


 


गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

बिंब hey eshwar-3 (tanu thadani) हे ईश्वर -3 { तनु थदानी }


आज  सुबह   से  ही  परेशान   हूँ  मैं ,
अपनी  अजन्मी  कविता में  बिंब को ले कर !

पुरानी  चप्पलों  को  बिंब   बनाया  नेताओं  का 
घूर  पड़ी  सारी  पुरानी   चप्पलें  घर  की -
क्या   तकलीफ   दी  हमने   आपके  पैरों  को  ??
बूढी  हैं , पुरानी  हैं , मगर   काटती  तो  नहीं  हैं  आपको !

खोटे  सिक्कों  को  टटोला 
खनक  पड़ें 
बोले - मत  बनाना  हमें  बिंब   इन  नेताओं  का 
हमारा  यूँ  तो  कोई  मोल  नहीं 
मगर  वज़न  कर  के  बेचोगे  तो  इन  नेताओं  से  अधिक   ही पाओगे !

यहाँ  तक  की  रद्दी  अखबारों  ने   भी मना   किया  मुझे 
कहा- नाम  रद्दी  है  हमारा 
खबरदार ! जो नेताओं  से  तुलना  की,
हम  बिकते  जरुर  है  मगर  राष्ट्र -हित  में 
वापस  आतें  हैं  नए  रूप  में !

घर  के  कुत्ते  ने  मासूमियत  से  कहा -
हमने  तो   आपका नमक   खाया  है  मालिक 
नहीं  बनाना  बिंब   हमें  नेताओं  का   
हमने  कभी  कोई  नहीं  की  गद्दारी 
युगों  का   देख  लो  इतिहास
हमारी  वफादारी  में कभी  कोई   कमी नहीं  आई ,
अगर  हमारे  जैसे  भी  होते ये  नेता  
तो  घुस  नहीं  पाती  हमारे  घर  में  एफ  डी  आई !!  


 




      

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

अब भी दो कौड़ी के नेता hey eshwar-3 (tanu thadani) हे ईश्वर -3 { तनु थदानी },


हाथ  जोड़  कर घर - घर जा  कर , वोट  मांगता   वादा  देता !
कपड़े   तेरे    खोल  ये  देगा , अगर   नहीं  तू  अब  भी  चेता  !

बचपन  में   थी  सुनी  कहानी ,दाना - जाल  - शिकारी  वाली ,
लेकिन है  अफ़सोस  की  उससे ,कोई  अब  भी सीख  न लेता ! 

हाट   हमारे  , फल   भी  अपने  , बेचेगें  अब    बाहर   वाले ,
रोयेगा   उपजाने  वाला  ,   और   लुटेगा   यहाँ   पे    क्रेता !

महंगाई   है , महंगाई   में ,  एक   चीज़   ही   रही  अछूती ,
कल  भी  दो  कौड़ी  के  थे तो ,अब  भी  दो  कौड़ी  के  नेता !
      

मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

धूप को तो आलिंगन में रखना था hey eshwar-3 (tanu thadani) हे ईश्वर -3 { तनु थदानी }



तुम  तो   धूप   थी  जाड़े  की 
जिसको  मैंने  प्यार  से 
पकड़  रखा  था   अपनी दोनों  हथेलियों  के  बीच !

जो  हमसे  बड़े  थे 
सभी  हँसे  थे 
कि  धूप   तो  हथेलियों  में  भरी  नजर   आती  है
अंततः  फिसल   जाती  है !

नहीं  फिसली  धूप,
उम्र  की  गर्मियों  में 
भरी  दोपहरी जब
हथेलियों  में  भरी  धूप  ने 
जला  डाला  मुझे 
तब लगा 
नहीं  है   वो  मेरी धूप 
ये  तो   कोई  और  है 
फिर  कहाँ  गई  वो   मीठी  धूप ??

कोई  नहीं   रोया  की  धूप  की  मिठास   खो गई 
गौर  से  देखा  जली   हथेलियों  को 
जहां  धूप  से  चिपक  मेरी  मुस्कान  सो  गई !

सच  कहूँ 
धूप   को  हथेलियों  में  पकड़ना   ही गलत  था 
धूप   को  तो   आलिंगन  में  रखना  था 
तभी  वो  मेरी   हो पाती 
जिस  दिन  धूप   मेरी   हो  जाती 
जलती तो  मेरे  ही  भीतर 
पर  मुझे  न  जला  पाती !!



  







    

सोमवार, 3 दिसंबर 2012

हे ईश्वर ! -{ तनु थदानी } hey eshwar-(tanu thadani)



कल  घूमते -घूमते  शहर  के एक  घर  से  जब  बात हुई 
तो  उसके  बंद  दरवाजे  ने   कुछ  राज यूँ  खोले -
चारपाई  को  ड्राईंग -रूम  से   हटा कर 
पीछे  बरामदे   में  रखना 
उतना   नहीं  था  दुखद  उसके  लिए 
जितना   दुखद  था   बाबूजी  का  अब उस  चारपाई  पर 
बरामदे  में  सोना !

सुविधानुसार  तर्क   भी बनाये  गये 
घरवालों  की तरफ  से 
कि 
ड्राईंग - रूम  के  हो-हल्ले  से  उन्हें    निजात मिली 
वहीँ  बरामदे  में  सटे  बाथरूम  होने  से 
उनकी दिनचर्या  में  सरलता  आयी !

फिर  उस  दरवाजे  ने 
मेरे कान  में   धीमे  से  बताया -
बेटा   बुरा  नहीं  है  इतना
वो तो  बाबूजी  ने   खुद  प्रस्ताव  रखा था 
नए  सोफे  की  जगह  बनाने  हेतु !

बाजू  वाले  दरवाजे  के   बारे में  बताया 
उसके   अन्दर  कमरे  तो  हैं 
मगर  नहीं  है  बरामदा ,
सो  उनके  बाबूजी आश्रम  में  रहतें  हैं !

बेटा  उनका भी  नहीं  है  बुरा 
कितना  ख्याल रखता  है  -
हर महीने  मिलने  जाता  है,
मिलने   वालों को   बताता  है -
घर  पे तो   कितने  अकेले  थे  बाबूजी 
वहाँ  तो  हमउम्र  की अच्छी  कंपनी  मिल गई ! 

मगर   अभी तक  यकीन  नहीं  आया  
कि  उस  बंद  दरवाजे   ने   मुझे  ये सब  बताया ...
हे  ईश्वर !  क्या  मेरे  बालों  में   आती  सफेदी  देख  ली  उसने ??