शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

tanu thadani तनु थदानी जो भूले खु़दा को

आये तो फूल बन मगर ; हो शूल गये हम !
छोड़ी जमीन ; हेकड़ी में ; झूल गये हम !


चेहरे पे ; बदन बुद्धि पे ; क्यूं नाज हम करें ;
दुनियां से गये ; जब गये ; समूल गये हम !


रहने के लिये देश ; शहर ; घर बनाया फिर ;
औक़ात में रहने की अदा ; भूल गये हम !


जो भूले ख़ुदा को तो ; यूं औक़ात बतायी ;
दो पल के जलजले से ही ; हो धूल गये हम !
------------------------ तनु थदानी

गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

tanu thadani तनु थदानी अमीरी देख बच्चे की

बिना माँ के कोई भी घर ; कभी भी घर न कहलाता !
समझते गंर जो शहरी ; कोई वृद्ध आश्रम न बनवाता !


शहर की रौशनी में ; शक्ल सबकी ; यूं हुई रौशन ;
सभी इतने चमकते हैं ; कि कुछ भी दिख नहीं पाता !


वो मिट्टी खेत की खातिर ; महज़ मकान की खातिर ;
करोड़ों सुख भरा जीवन ; यूं ही लड़ के गुजर जाता !


हमें सिलने जो आते ; अपने अपने धैर्य के टुकड़े ;
तो हम नंगों के खातिर ; खुशियों का ; कुर्ता भी बन पाता !


बहन ने भेजी राखी ; हैसियत ; भाई की तौल कर ;
गरीबी जलजले सी है ; कि रिश्ता टूट है जाता !


अमीरी ये नहीं साहब ; कि तेरे लाख खर्चे हैं ;
अमीरी देख बच्चे की ; वो तो कुछ भी न बचाता !
----------------------- तनु थदानी

बुधवार, 16 दिसंबर 2015

tanu thadani तनु थदानी किसी की माँ न बिछुड़े

मेरे किस्सों में कैसे आ गई ; है प्यार की छाया !
हूँ माँ के साथ जो रहता ; वहीं से किस्से हूँ लाया !


अभी भी चोट लग जाये ; तो मुँह से माँ निकलता है ;
हमें तो अब तलक ; माँ के बिना;जीना नहीं आया !


गले लगना वो नन्हे हाथ से ; माँ के गले लिपट ;
सुकूं वो बालपन सा ; सच कहूं;तो फिर नहीं पाया !


किसी की माँ न बिछुड़े ; ऐ मेरे; मौला कुछ ऐसा कर;
कड़ी जीवन की धूप में ; सलामत माँ का हो साया !
----------------------- तनु थदानी

मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

Tanu thadani तनु थदानी बस अब नहीं नहीं


ख्वाबों के पास होता ना ; खाता ना ही बही !
हर ख्वाब लूटे चैन ; हर एक ने कही !


बस उम्र काटते रहें ; सुबहों से शाम तक ;
हमने बितायी जिंदगी ; कैसे कहें सही !


मैंने लगाया प्यार ; पर ; धोखा उपज गया
इस दौर में मासूमियत ; महफूज ना रही !


अब दोस्ती के हश्र के ; किस्से ना पूछिये;
बस जिक्र से जाती उतर ; इज्जत रही सही !


रब ने कहा कि मांग ; कर दू्ं जिंदगी लंबी ;
हमने कहा पलट के ; बस अब नहीं नहीं !
------------------------ तनु थदानी

मंगलवार, 24 नवंबर 2015

tanu thadani तनु थदानी मैं खुशबू ढूंढ लाऊँगा

भले तुम चोर ही कह लो ; महज़ नींदे चुराऊंगा !
किसी से प्यार हूँ करता ;सो नफरत कर न पाऊंगा !


मुझे न चाहिये तलवार ;अंधेरों से लड़ने को ;
मैं घर के द्वार पे अपने ; दीया बस इक जलाऊंगा !


तेरे घर अब भी इक ;बच्ची ही आ; झाड़ू लगाती है ;
जो तेरा काम जनसेवा है ; तुझको क्या बताऊँगा ?


कुरेदो गंदगी ही गंदगी को ; तेरी फितरत है ;
मेरी आदत है तितली सी ; मैं खुशबू ढ़ूढ़ लाऊँगा !
------------------------ तनु थदानी

रविवार, 22 नवंबर 2015

tanu thadani तनु थदानी भोले दिल के नहीं ग्राहक हैं


जब कलपूर्जे ही नीयत के ; घिस के रद्दी हो जाते हैं !
चेहरे चिकने या गोरे हो ;वो साफ़ कहाँ रह पाते हैं !


हम कत्लगाह के बाशिंदे ; हम जन्नत - हूर- परी मांगे ;
पर काम किया करते ऐसे ; कि कहने में शरमाते हैं !


अब भले बुरे का पैमाना ; इकदम ही गैरजरुरी है ;
औक़ात यूं नापी जाती है ; कि कितना रोज कमाते हैं !


घर - घर में घातों के परदे ; यूं बड़े सलीके टंगे मिलें ;
ज्यूं नंगे खड़े थे बता रहे ; कि कपड़े पहन नहाते हैं !


मातम पे रोने वाले जब ; ढ़ेरो मिन्नत से हैं आते ;
ऐसे जीवन की शैली पे ; आंखों में आंसू आते हैं !


किडनी -लीवर -आँखें व रक्त ; अब सबके दाम हुए निश्चित;
भोले दिल के नहीं ग्राहक हैं ; बाज़ार के लोग बताते हैं !
------------------------- तनु थदानी

गुरुवार, 9 जुलाई 2015

चलो इक बार जी के देखते हैं तनु थदानी tanu thadani chalo ek baar je ke dekhte hain

 चलो इक बार जी के देखते हैं

 ये मेरी नींद भी तब तक,  मुकम्मल हो नहीं पाती !
प्रिय मेरी , मेरे सपनों में , जब तक आ नहीं जाती !

मेरी किस्मत भी तो इक कील है,जीवन फटी पतलून,
जिसे अक्सर बचाता हूँ , मगर वो कील चढ़ आती !

खुदा ने सब बनाया ठीक, बनाया दिल मगर ये क्यूँ ?
जहाँ यादें सदा  फंसती , मगर सांसे निकल जाती !

तुम्हारे  पास  भी  परिवार  था , था  पास  मेरे  भी ,
तुम्हारा प्यार ही तो  है , जो सबको  छोड़ के आती !

हमारे  पग  , हमारे   मैं   के  , लंबे , राह  में  भटके ,
जुबां  पे  नीम  की  खेती , हमें क्या खाक समझाती ?

नगाड़े  जब  बजे दूरी के , तब  इक  मौन  सोता था ,
उमर  के  इक  धमाके  ने , बनाया  फिर हमें  साथी !

चलो  दिमाग  की  खेती  में  हम ,  माफी  उगाते  हैं ,
चलो  इक  बार  जी  के ,  देखते हैं , फूल की भाँति !
---------------------------------------  तनु थदानी

रविवार, 15 फ़रवरी 2015

tanu thadani तनु थदानी फिर नींद मुझे बेहतर आयी

नीयत जब मेरी बहनों से , मुझसे बिन पूछे लड़ आयी !
मैंने कितना भी स्वांग रचा,पर आँखें फिर भी भर आयीं!

मन चुप था , धन जो चंचल था , बहनें मेरी उनसे खेलीं ,
मन था ही नहीं,इस बात की वो,हर इक से चर्चा कर आयीं!

वो रंग बिरंगी तितली थी , जो संग थी खेली बचपन में ,
जीने के नाटक में बिछड़ी , वो फिर से मेरे घर आयी !

सब दिया मगर वो हंसी नहीं,वो जीत हार में फंसी रही,
मैं जीत हार से मुक्त हुआ , फिर नींद मुझे बेहतर आयी !
                                    ------- ----  तनु थदानी

शनिवार, 31 जनवरी 2015

tanu thadani तनु थदानी मैं बस छटपटा गया

पाया सुकून ख्वाहिशों को , जो घटा गया !
खुशहाल हुआ ज्यों ही अपना ,मैं हटा गया !

दूरी  नहीं  मिटी , मिटायी  लाख  लकीरें  ,
लफ्जों का वो कबाड़ी,जाने क्या चटा गया !

मैं  गिन रहा था जोड़ जोड़, गल्तियां उसकी ,
आया,गले मिल कर के वो,सब कुछ घटा गया !

था प्रश्न, बनना क्या है? तो , मैंने कहा बच्चा ,
 कह तो दिया , न होगा , मैं बस छटपटा गया !

शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

tanu thadani तनु थदानी एक मजहब बनाते हैं


एक मजहब बनाते हैं , एक ईश्वर बनाते हैं !
हमें हैं बेचने कट्टे , चलो सबको लड़ाते हैं !

मुझे बेवकूफ तुझको बोलने का,अब नहीं मतलब,
लड़ाता मैं हूँ फिर भी फैसले , मुझसे कराते हैं !

तुम्हारी धर्म पुस्तक में , जो खंजर घूमता रहता ,
उसी की धार पे खूं के निशां ,सबको डराते हैं !

किसी मासूम की आंखों में ना,आंसू कभी आये ,
चलो मजहब को तेरे मोड़ , खिलौना बनाते हैं !







गुरुवार, 22 जनवरी 2015

tanu thadani तनु थदानी मुझे तुम नास्तिक कह लो

कहीं  सवाल  के  उत्तर में , पत्थर बाज बनते हैं !
यही तो प्रश्न है कि , क्यूँ हम पत्थर बाज बनते हैं ?

हजारों गज जमीं जो  गांव में थी , छोड़ छाड़ कर,
यहाँ सौ गज के घर में रह, तरक्की बाज बनते हैं !

वो मां ने जान के चालाकियां ,फिर भी दिये कंगन,
मगर  समझे  नहीं  बेटे , यूं  चालबाज  बनते हैं !

गजब थी भीड, फाटक बंद था , थी रेल आने को ,
निकाला खुद को नीचे से , बड़े जांबाज  बनते हैं !

हमारे  पास  मौके  खूब  आते , इंसा  होने  के ,
मगर हम आदतन, खुद से ही ,धोखेबाज बनते हैं !

फरिश्ते  देख  कर  भागे , हमारे हाल धरती के ,
कि  ईश्वर पालने के भी  यहाँ , रिवाज बनते हैं !

हम ही बस श्रेष्ठ हैं , सारी लड़ाई का यही मुद्दा ,
धरम की देह पे नाहक ही, खुजली खाज बनते हैं !

कभी मिलना हो मुझसे तो,धरम को छोड़ के मिलना ,
धरम को  ओढ़ने  वाले  ही , पंगेबाज  बनते  हैं !

मुझे तुम नास्तिक कह लो,मगर ये तो बताओ,क्यूँ,
धरम  से युद्ध  व  जेहाद  के , अल्फाज बनते हैं ??