मंगलवार, 28 अक्तूबर 2014

tanu thadani तनु थदानी भारत बड़ा खुश है

घमंडी हूँ , है रूआब कि , भारत बड़ा खुश है !
हर  शै  में आफताब कि , भारत बड़ा खुश है !

सीमा  पे  मुझे  सोते , नहीं  आप   देखोगे ,
पर देखता हूँ ख्वाब कि , भारत बड़ा खुश है !

बे - फिक्र होली खेलो , दिवाली मनाओ जी ,
चाहत यही जनाब कि , भारत बड़ा खुश है !

माँ  खुद  ने  दी जुराब, बोली डगमगाना ना ,
पैरों  में  वो जुराब कि , भारत बड़ा खुश है !

सीमा  पे  आ  के  पूछते , हैं  हालचाल जो ,
उनको मेरा जवाब कि , भारत बड़ा खुश है !

ऐ दुश्मनों ! गंर तुम भी , हिमाकत  नहीं करो ,
तो तुमको भी आदाब कि ,भारत बड़ा खुश है !

सोमवार, 27 अक्तूबर 2014

tanu thadani तनु थदानी नेता हैं हम

हमने अपनी बुद्धि , कमल या ,हाथ बना कर रक्खी है !
तभी तो हिस्से अपने केवल ,  मात बना कर रक्खी है !

नहीं कोई इंसान यहाँ है , हिन्दू - मुस्लिम- सिख यहाँ ,
राजनीति  के  आड़े  ऐसी , घात  बना  कर  रक्खी  है !

तुम जनता हो कमियाँ मेरी,गिन-गिन अपनी उमर भरो ,
नेता हैं  हम, हर कमियों  पे , बात  बना कर रक्खी है !

कोई  जर्मन  शेफर्ड   है  तो , कोई  पामोलिन  यहाँ ,
हमने तो भई, कुत्तों  में  भी , जात बना कर रक्खी है !

घोड़े अब गदहों से मिल कर,आलस का व्यापार करें ,
उल्लु से मिल चमगादड़ ने , रात  बना कर रक्खी है !


रविवार, 26 अक्तूबर 2014

tanu thadani तनु थदानी यहाँ पे सब ही ज्ञानी हैं

किसी को राम के अवगुण कहो तो ,चिढ़ वो जाता है !
किसी को ये कहो अल्लाह नहीं है , भिड़ वो जाता है !

कहीं  वो  भूल  न  जाये , वो  हिन्दू है , इस भारत में ,
तभी  तो  श्राद्ध  में  वो  डाक्टर , पंडे   खिलाता  है !

कभी  जकात  के  खर्चे  का  ब्योरा , माँग कर देखो ,
सुनोगे , दोस्त हो काफिर के जो ,ये सब सिखाता है !

कोई भगवा पहन खुश है , तो कोई टोपी जालीदार,
हमें  इक  वेष  में  वो  टांक  कर , उल्लु  बनाता है !

सबों  के  पास अपने मतलब वाले , ज्ञान सी शै है ,
यहाँ पे सब ही ज्ञानी हैं ,क्यूँ 'तनु ' सिर खपाता है ?

शनिवार, 25 अक्तूबर 2014

tanu thadani तनु थदानी किसी को दुःख न बाँटो

न पूछो क्या बताऊंगा , क्या डरते देखा मैंने !
बदन में आत्मा थी ,जिसको, मरते देखा मैंने !

यहाँ धोखे भी इक आदत की तरह, हो गयें जी ,
किसी को शर्म न आती , यूँ  करते  देखा मैंने !

वफा  के  जिक्र  पे , पूरा  शहर  ही रो रहा  है ,
वफा सीलन तरह,घर घर ही , झड़ते देखा मैंने !

नदी मिलती है समुन्दर में , कोई श्राप होगा ,
वो मेरे दिल की नदी को , यूँ करते देखा मैंने !

आँख  भर आई मेरे धैर्य की , था दर्द इतना ,
अपने घर में जब, खुद को,बिखरते देखा मैंने !

मुझे मासूमियत मुस्कान से भी , डर है लगता ,
वो मीठे पेड़ पे विष को , निखरते देखा  मैंने !

किसी को दुःख न बांटो ,है सभी के पास दुःख ही ,
सुखों की चाह में , सबको ही , लड़ते देखा मैंने !

बुधवार, 15 अक्तूबर 2014

tanu thadani तनु थदानी.थोड़ी तो शर्म दो ना

जन्नत को घर में टांका ,रब तू बना जो धागा !
तू माँ  में  मेरी  दिखता , ये  सोने  पे  सुहागा !

ये  नाम  के  मसले  पे , क्यूँ  लोग हैं झगड़तें ,
मैंने  तो  जो  भी मांगा , बस हाथ जोड़ माँगा !

चालाकियों  में  अपनी , हम  दर्ज  तुझे करते ,
हमसे कहीं है बेहतर,  वो काला काला कागा !

भजनों की लय न जानु, नमाज  वजू क्या है ?
वो पल दीवाली ईद है , जब नींद से मैं जागा !

न  बैट्री  न  बिजली , फिर भी है हम में ऊर्जा ,
तेरा  ही  करिश्मा  ये , जो  बूझा न, अभागा !

हर  साँस से तू आता , हर साँस से तू जाता ,
फिर भी युगों -युगों से तुझे खोजते हैं गा गा !

मंदिर हो या हो मस्जिद, या चर्च, सब हैं मंडी ,
तू रोज वहाँ बिकता , सालों  से  बिना नागा !

हमें शर्म क्यूँ न आती ? थोड़ी तो  शर्म दो ना ,
तुझको  ही  बेच  खाते , ये कैसा रोग लागा ??