गुरुवार, 21 अगस्त 2014

tanu thadani तनु थदानी हम ढ़ूंढ़ते हैं क्यूँ भला

ना लोरियां , बाँहों का झूला , सो रहा बचपन !
न  गोद  है  सिरहाने , न  ही प्यार का आँगन  !

ईटों  पे सर रख  , भूख ओढ़ , सो रहा बच्चा ,
ये  है  नहीं  कोई  कथा  , ये  देश  का  दर्पण  !

सपनों  में  भी  मासूम, माँ  को खोजता होगा ,
हम क्यों न हों विचलित,गिरे क्यूँ न अश्रु कण!

धरती  पे  ही  जब  है  नहीं ,सुकून ओं  मंगल  ,
हम ढ़ूंढ़ते हैं  क्यूँ  भला  , मंगल में जा जीवन  ?

शनिवार, 16 अगस्त 2014

tanu thadani तनु थदानी तेरे ही हक़ में कहता हूँ

तू कर मेहनत चुपचाप, सफलता , इक दिन शोर मचायेगी !
तू बाँट खुशी जग में , खुशियाँ , चल कर तेरे घर आयेंगी !

जिसने भी दिल में बैर रखा , दिल  बना दिया कचरा - डिब्बा ,
जब  दिल  में रखी गंदगी तो , फिर मख्खी  ही मंडरायेंगी !

हिन्दू - मुस्लिम - मंदिर - मस्जिद, रैली-रैला -दंगे- कर्फ्यू ,
सोचो  ये  बातें  भारत  की , कैसी  तस्वीर  बनायेंगी ?

जब  बात  मान कर माँ  की  हम  , अच्छे बच्चे बन जायेंगे ,
नेताओं  की  पूरी  जाति , फिर  भूखी  ही  मर  जायेंगी  !

कभी  सीधे  से , कभी  बिंब  बदल, मैं बात  पुरानी  कहता हूँ ,
तेरे  ही  हक़  में  कहता  हूँ , इक  रोज समझ तो आयेंगी !

जिसका जो काम वो ठीक- ठाक, बस काम वो अपना कर जाये ,
सचमुच  में  भारत  की  सड़कें , तब  सोने  की  बन जायेंगी !

मंगलवार, 5 अगस्त 2014

tanu thadani तनु थदानी माँ मुझे दो नींद के , कतरे कहीं से भेज दो ना

एक बचपन था सुहाना ,बस उसी बचपन को ला दो !
माँ दो ,घर दो,फिर चमकता,सा शहर ये दो या ना दो !

मैं  तरसता  हिचकियों  को , और  तेरी  रोटियों को ,
माँ  मुझे  या  हिचकियां  दे , या  मुझे  दे रोटियां दो !

माँ  मुझे  दो  नींद  के , कतरे  कहीं  से  भेज  दो ना ,
या  तू  मेरे संग  हो  ये ,मुठ्ठी भर अहसास ला दो !

एक  अंधा  सा  कुआं  है , ये  मुआ  परदेस  सारा ,
गिर  रहा  मैं ,माँ  मुझे बस, रौशनी की रस्सीयां दो !

एक खबरी ने बताया , छत  टपकती  है अभी तक,
माँ ओं मैं लाचार  दोनों , ऐ खुदा! बारिश तो ना दो !

रविवार, 3 अगस्त 2014

tanu thadani तनु थदानी हम नासमझ थे.

हम नासमझ थे धर्म की , बातों पे अड़ गये !
कंगले रहें हम, नेता जी के , घर ही भर गये !

बच्चे  को  ना  पढ़ा सके , न घर ही बनाया ,
टोपी तिलक के नाम ही , जीवन ये कर गये !

 हमारी  गरीबी  का  यही ,  अर्थशास्त्र   है ,
लड़े  बन  के  पशु  हम, पशु  खेत  चर गये !

गाजा में मरने वाले  या , कश्मीर  में पंडित,
दोनों  जगह  इंसान  थे , इंसान  मर  गये !

ईश्वर  हमारा  है   ,और  अल्लाह  तुम्हारा ?
कैसे  हमारी  अक्ल  पे ,पत्थर ये पड़ गये ??
----------------------    तनु थदानी


शनिवार, 2 अगस्त 2014

tanu thadani तनु थदानी काफिर ही मैं अच्छा

अल्लाह की ही सांसे हैं, मैं अल्लाह का बच्चा !
अल्लाह का सब  खेल  है , क्यूँ  खा रहे गच्चा ?

पैदल क्यूँ अकल से फिरे , धर्मों की सड़क पर,
लिख पढ़ के भी तू क्यूँ रहा ,है अक्ल से कच्चा ?

जो माँ की पूजा  करते  ही , काफिर मुझे  कहा ,
मुसलमान तुम अच्छे रहो ,काफिर ही मैं अच्छा !

ये सर- बदन- दिमाग-जात,  सब वतन की  है ,
जीया  जो वतन  के  लिये , इंसान वो  सच्चा !