शनिवार, 29 मार्च 2014

tanu thadani मैं अपने दुश्मनो को यूं भी सज़ा देता हूं तनु थदानी


मैं अपने दुश्मनो को, यूं भी सज़ा देता हूं !
हमेशा खुश लगा रहता हूं,मुस्का लेता हूं !

तू मुझ पे आंख मूंद, कर लो भरोसा बंधु,
न  कोई  मंत्री हूं , ना   मैं  कोई  नेता  हूं !

मुझे उस रब ने बनाया है,संभालेगा वही ,
बड़े आराम से , कागज की नाव खेता हूं !

किरायेदार मेरे , मुझसे ही मांगे  किराया,
अजीब शख्स हूं,अब तक भी नहीं चेता हूं !

मेरी खुशियों के ख़जाने का पता ,जो पूछे,
उसे मैं घर में अपनी , माँ से मिला देता हूँ !




शुक्रवार, 28 मार्च 2014

tanu tjadani याद तू आयी तनु थदानी

माँ  को  देखा  कपड़े  धोते !
भूल के ऐनक पहन के सोते !

प्यार लफ्ज़  के प्यारे  माने ,
माँ  न  होती , कभी न होते !

हमें  सुकूं  के  मोती  मिलते ,
माँ की याद में लगा के गोते !

 माँ से  ही  तो घर  है बनता ,
हर  इक  रिश्ते  माँ से होते !

मेरा  बचपन  बचा  रखा  है ,
माँ  ने  उम्र  को  खोते खोते !

जिक्र तेरा  माँ प्यारा गमला ,
बड़े   हुये  हम  यादे  बोते !

देख के खाली  हाथों  को माँ ,
याद  तू  आयी  रोते - रोते !

सोमवार, 24 मार्च 2014

tanu thadani किसी से प्यार मत करना तनु थदानी

मैं खाली हूँ नहीं , मुझमें दुःखों का ,इक खजाना है !
मगर ये ज़िद है मेरी ,मुझको केवल हँसते जाना है !

तुम जिसको प्यार हो कहते, वो केवल ढ़ोंग है होता,
यहाँ दिल छूट जाते हैं , महज़ जिस्मों को पाना है !

मुझे  तोहफे  में धोखे  दे के , मेरे  साथ वो हो  ली ,
उसी के साथ अब मुझको , यहाँ जीवन बिताना है !

मेरे घर माँ मेरी खुश है बहुत, बस इसलिए मुझको,
मेरी खुशियों की कीमत में भी , मेरा घर बचाना है !

मेरी नज़रों के आगे रहता है , विश्वास का कातिल,
मेरी मजबूरियाँ देखो , उसी से दिल लगाना है !

किसी से प्यार मत करना ,कभी विश्वास न करना ,
महज़ अल्लाह अपना है, यहाँ सब कुछ बेगाना है  !



रविवार, 23 मार्च 2014

tanu thadani हम खुद से ही शुरुआत आखिर क्यूँ नहीं करते तनु थदानी


क्या  कहूँ  कि  कैसा  मैंने , ऐब  पाला है !
 हर ग़ज़ल में मैंने अपना ,दिल निकाला है !

मैं  परेशां  था कि मुझको , दिख नहीं रहा ,
क्यूँ समझ आया नहीं , चश्मा ही काला है !

कुछ  नहीं  अब  स्वाद, जिंदगी में आ रहा ,
मुँहलगा  सा  मुँह  में मेरे , एक  छाला  है !

घर  समाजवादियों  का ,  देख  मैं  हैरान,
समाजवाद ए टी एम सा , कर जो डाला है !

गिध्द ने रो कर कहा ,संसद में ,कि उसका,
देश  के  नेताओं  ने  ,  छीना  निवाला  है !

हो रही जो कम गरीबी , क्यूँ नहीं दिखती ?
सरकार के रिकार्ड में कुछ, गड़बड़झाला है !

रुपये कमाये तीस तो , सरकार चिल्लाई,
वो  कहाँ  गरीब , वो  तो , भेष  वाला  है !

सरकार बदलने से होगा , कुछ नहीं यहाँ ,
हम  दिलों  से सड़  चुके , ज़ुबां पे ताला है !

हम खुद ही से शुरुआत,आखिर क्यूँ नहीं करते ?
क्या  कोसने  से  दूसरा ,  सुधरने  वाला है ??.

शुक्रवार, 14 मार्च 2014

tanu thadani तू मेरी नींद में आना तनु थदानी


तू मेरी नींद में आना
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मेरे घर में नहीं बिटिया , मेरा घर खो गया है !
बहुत लाचार हूँ , मिलता नहीं , जो जो गया है !

अरे ! सीने पे पत्थर रख , मैं दुःख पी भी लेता ,
करूँ मैं क्या ,जो सीना मेरा ,पत्थर हो गया है !

बहुत चालाक था कि , सारी दुनियां  लूट  लूंगा ,
बिना बिटिया ये जीवन लुट गया,दिल रो गया है !

मेरी बिटिया  तेरी छम छम, मेरे अंतस में गूंजे ,
मेरा  भगवान  मेरे  अंदर , तुझको  बो गया  है !

तेरे बचपन, तेरी किलकारियों में , बंध गया मैं ,
तू  मेरी  नींद  में आना , ये  पापा  सो गया  है !

शनिवार, 8 मार्च 2014

tanu thadani chalo khatey kasm hain ab. चलो खाते कसम हैं अब तनु थदानी


क्या हम इंसान थें , या हिन्दू मुस्लिम, क्या बतायेंगे ?
हम अपने बच्चों को , जाने से पहले क्या बतायेंगे ?

हमारे  देश  को  फाड़ा गया , अखबार की मानिंद  ,
कि हम सब एक थें , सदियों से , कैसे भूल  पायेंगे !

हम  ही  बस श्रेष्ठ  हैं , बस इसलिए हम लड़ते रहते हैं  ,
वहाँ  अल्लाह -प्रभु  है एक, जहाँ हम मर के जायेंगे !

हमारे  पास  इक  सी  माँ  है , घर  है , बच्चे  इक  से है  !
हमारी  इक  सी  कोशिश  है , कि   कैसे  मुस्कुरायेंगे  !

कि जिस दिन ठान लेंगे हम,  की मोहरें  हम नहीं  इनके  ,
हमारे   मौलवी   पंडित  व नेता  , कर   क्या  पायेंगे  ?

महज   भाषा  से  हमको  जोड़  कर  ,  लड़वा  ये देते  हैं  !
तो  आखिर अक्ल को अपनी , बता हम कब जगायेंगे  ?

हमें  महफूज  रखनी है ये दुनिया ,  बच्चों की खातिर,
चलो  खाते  कसम हैं अब, कि   इंसा  बन  दिखायेंगे  !

शनिवार, 1 मार्च 2014

tanu thadani मौसम वोट का क्यूँ आया तनु थदानी

आँखें सपने भर लायी !
नेताओं ने लोरी गायी !

देश लुटा चप्पे - चप्पे ,
कौन  करेगा  भरपाई  ?

लाभ हानि ही पढ़ा लिखा,
फिर अपनी आयु खायी !

इज्जत केवल रस्म बनी ,
ये कैसी कालिख छायी ?

बोयी थी खामोशी फिर,
चींखे कैसे उग आयी ?

मौसम वोट का क्यूँ आया ?
गली गली है घबरायी !!