शनिवार, 27 जुलाई 2013

हमारा हर मिलन त्योहार है औं तीज है hey eshwar-3 (tanu thadani) हे ईश्वर -3 { तनु थदानी }


तुम्हारी  फ़िक्र  तो  ,जीने  की  इक  तमीज़  है  !
तुम्हारा  जिक्र  भी  ,साँसों सी ही  इक चीज़  है !

तु  धागा  प्रेम का बन , मुझमे  सिली  जाती  हो ,
मेरा  जीवन  तो महज़ ,  इक  फटी  कमीज़   है !

कई रूतबों  को  पार  कर  के , तेरे  पास  हूँ   मैं ,
तू  मेरा लक्ष्य  थी  और , अब  मेरी  तहजीब  है !

करोड़ो  बार  कत्ल  हो  के  भी , हम  मुस्कुराये ,
हमारे   रक्त   में  , उल्लास   वाले   बीज    हैं  ! 

हमारा  प्रेम  जो  रिश्ते  का  है ,  मुहताज़  नहीं ,
हमारा  हर  मिलन  त्योहार है  , औं   तीज   है !

शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

प्रेम - प्रेम हम चिल्लाते हैं -hey eshwar-3 (tanu thadani) हे ईश्वर -3 { तनु थदानी }prem prem ham chillate hain


लिपट मैं रोया ,रात  समूची ,थी वो  प्रेम  के शव की काया !
विश्वासों  के  सन्नाटे  में  , धोखे  ने   था  मार   गिराया  !

प्रेम - प्रेम  हम  चिल्लाते  हैं , खुद  से  भी तो  प्रेम  नहीं  है , 
पूरा जीवन  बिता  दिया यूँ , बहरों  बीच  ज्यों गाना  गाया !

चुम्बन  से आलिंगन  तक तो ,बस  गर्मी थी  साँसों  की ही ,
बरसों  उलझा रहा इसी  में ,प्रेम कहाँ  था  समझ ना पाया !

लगता  तो वो  साथ था मेरे ,मरा अचानक  क्यूँ  कर  कैसे 
मंडप  से  भजनों तक पूछा , प्रेम  ने आखिर क्या था खाया ? 

शाम  के  आँगन  पसरी  बूढ़ी , हड्डी  के  ढाँचे  ने  रो  कर ,
कहा सफ़र हो गया ख़तम  अब ,कर दे ईश्वर प्रेम की छाया !


शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

समझ में आया हमको देर से hey eshwar-3 (tanu thadani) हे ईश्वर -3 { तनु थदानी }samjh me aaya hamko der se

हमें  अफ़सोस  है  कि क्यूँ  भला , हमने ये  कर डाला !
जिसे  था  सींचा  उम्र  भर ,वो  पौधा  था  ज़हर वाला  ! 

हमारे  ऐश  के  तो   सब  तरीके  ,   हो  गयें  बे- शर्म  ,
ख़बर  है खून  से  अपने  ही उसने , मुंह किया  काला !

हमारी  इस  सदी  ने  जिस्म  की , आयु  बढ़ा  तो  दी  ,
मगर  जो  आत्मा  इसमें  थी ,उसको  मार  ही  डाला  !

उसे  तो  बस  हड्पनी  थी  जमीं , मंदिर  के  नाम   पे  ,
उसे  क्यूँ  दीखता  कि  ठीक  उसके , नीचे  है   नाला  !

उसे   रोज़ी  कमानी  थी ,  तभी   मंदिर  बनाया   है ,
करिश्मा  देखिये की  उसने इक , भगवान  भी  पाला !

हमें  नंगे  दिलों  से  दौड़  कर , जिनसे  लिपटना था ,
झिझक  के  लौट  आये ,मन्दिरों  में  देख  के  ताला !

समझ  में आया  हमको  देर  से , कि  पास  है  मेरे ,
रहा  मैं  ढूंढ़ता  जिसको , लिये  दीपक लिये  माला !