इक सिंध था जो सिंधियों का, इक जहान था ! उस सिंध में दादा जी का भी, इक मकान था !
हमारी जमीन, संस्कृति, मुफत में बांट दी ,
नेहरू ने सिंधु धार की, परवान काट दी !
अब छुट्टी में, बच्चे कहो, किस गाँव जायेंगे ?
अब मिल के कब बैठेंगे, कब खुशियाँ मनायेंगे ??
बच्चों को अब हम सिंधियत पर, क्या बतायेंगे ?
गांधी ने दर - बदर किया, क्या ये सुनायेगे ??
पंजाब ओं बंगाल भी, यहाँ वहाँ गया,
जो सिंध झूलेलाल का था, वो कहाँ गया ?
हम शेर , मगर, राजनीति की भेंट चढ़ गये ,
सब लाडे लोरियां, वतन के नाम कर गये ं !
ख्वाहिश हेमू कलाणी की, बेकार हो गई,
दाहर सेन वाले सिंध की, जमीन खो गई !
जब बंट रहे थे सब, मिटाये जा रहे थे हम,
बस राष्ट्र गान में बचे, इस बात का है ग़म !
सर्वप्रथम सभ्यता की, इक गवाह है सिंधु ,
भारत के सीने रिस रही, इक आह है सिंधु !
सिंधु के बिना गंगा जो, परिपूर्ण नहीं है ,
तो सिंध के बिना ,ये हिंद पूर्ण नहीं है !
बच्चा जो गुम है भीड़ में, वो मेरा सिंध है,
न सिंधु, सिंध की जमीं, ये कैसा हिंद है ??
------------------------ तनु थदानी