लपक के हाथ मिलाते, मगर खुल कर नहीं मिलते!
वो मजदूर जो कि दूसरों के, घर बनाते हैं,
उन्ही के घर पे सलामत, कभी छप्पर नहीं मिलते!
बड़ी खाई है सन्नाटे की, गिरता जा रहा हूँ मैं,
हमारे शहर में परिवार वाले, घर नहीं मिलते !
तुम्हीं से चोट हूँ खाता, बिखर के टूट हूँ जाता,
तुम्हारे हाथ में लेकिन कभी, पत्थर नहीं मिलते !
किसी की मुस्कुराहट में, कोई छल हो भी सकता है,
मैं इसको जान न पाता कभी, तुम ग़र नहीं मिलते !
------------------------------- तनु थदानी
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