बुधवार, 9 जुलाई 2025

भाग रही है उम्र हमारी

भाग रही है उम्र हमारी,फिर भी खुद को बहलाते हैं! 
यहाँ तो हम  थे जीने आये, जी न पाये, मर जाते हैं!

सदा कसूर नहीं होता है , इंसानों की गल्ती का भी, 
कभी अकड़ के कारण भी तो,रिश्ते स्वाहा हो जाते हैं!

देश, माँ, जल, अग्नि, वायु, पूजा योग्य बता के हम तो, 
इंसानों में गिने हैं जाते, चाहे काफिर कहलाते हैं  !

वफ़ा की बातें करने वाले, इश्क़ की बातें करने वाले, 
पढ़े लिखो के शहरों में तो, पागल बुद्धू कहलाते हैं!

नहीं जरूरी सभी बड़ों की, बातें सभी ही मानी जाये, 
हर समाज में मूरख भी तो, आखिर बूढे हो जाते हैं!
----------------------------------- तनु थदानी

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