गुरुवार, 17 जुलाई 2025

किसी को हो पता, तो ये बता

किसी को हो पता, तो ये बता, कि क्या कहानी है ! 
निपटते एक लोटे राख में , फिर भी फुटानी है  ! 

मेरे भीतर जो था उसूल, वो  तोड़ा नहीं मैंने, 
गया कुचला वो, जिम्मेदारियों की ,कारस्तानी है ! 

ये तो  हो गया खिलवाड़, माना खेल जीवन को, 
इसी जीवन के खेल में ही, सांसे हार जानी है  ! 

अकल को खोद कर ,प्रगति के ,गढ्ढे बना दिये, 
सभी को है पता कि,अकल को न, अक्ल आनी है  ! 

तेरे सिर पे जो 'मैं' है, वो तुम्हें, देगा नहीं उठने, 
मगर उस 'मैं' को पालो, ये कहाँ की बुद्धिमानी है ? 

हमेशा से ,ये ही होता है, सबको सब पता होता, 
मगर लगता है ये कि, हमको ये ,बातें बतानी है! 
-----------------------    तनु थदानी




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