है अबूझ खाकी और काले, कोट की भाषा !
मिले जो संग खादी का, बने वो ,खोट की भाषा!
कटी जेबें, लुटे जो हम, बना मसला नहीं कोई,
हताहत हो गये पर पढ़ सके न, चोट की भाषा!
चमक यूँ ही न आ जाती, सड़को नाली गलियों पे,
पता है हर जिले के नेता जी को, वोट की भाषा !
घूम आया मैं दुनियां, नहीं आयी जुबां आड़े ,
समझते हैं सभी सारे जहाँ में, नोट की भाषा !
सुनाया भी नहीं था गम, कि वो रो पड़ा क्यों कि,
समझता था वो कंपकपाते हुए, होठ की भाषा !
-------------------------- तनु थदानी
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