बरतन में पके खिचड़ी, तो स्वस्थ, बनाती है!
दिमाग में पके तो, हम ही को, खा जाती है !
मरने के लिए हमको , हर सुबह जगाती है!
ये जिंदगी यूँ हम पर, एहसान जताती है!
अपनी तो गरीबी हमें, उतना नहीं सताती,
दूजे की अमीरी ही हमें , खूब सताती है !
गुम होती खेलते ही, काग़ज़ की नाव जैसे,
मरते ही तुम को दुनियाँ,कुछ ऐसे भुलाती है!
तुम को भी ये पता है, कि हमको ये पता है,
जो गल्ती तुम्हारी है, झुकी पलकें बताती हैं!
गरं ढूंढना है ढूंढो, खुद की ही खूबियों को,
कमियाँ तो दुनिया सारी, ढूंढ ही लाती है!
-------------------------- तनु थदानी