हम ही लाठी, हम कपास, खुद ही को कैसे धुनते ?
ऊपर से ठंडे रहते , जीवन जीते जलते भुनते !
गले मिला तो रीढ़ नहीं ,आंख कहीं तो नज़र कहीं,
ऐसे रिश्तेदारों में फंस, हम भी तो पूरे सुन्न थे !
दोनों इक जैसे हैं होते , दोनों किसी की न सुनते!
जग जाहिर था चोर है वो,टोपी पहन के खड़ा हुआ,
बात थी देश चलाने की तो, कैसे भला उसे चुनते ?
------------------------------- तनु थदानी
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