शुक्रवार, 7 जून 2024

हम ही लाठी, हम कपास, खुद ही को कैसे धुनते ?

हम ही लाठी, हम कपास, खुद ही को कैसे धुनते ? 
ऊपर से ठंडे रहते , जीवन जीते जलते भुनते  ! 

गले मिला तो रीढ़ नहीं ,आंख कहीं तो नज़र कहीं, 
ऐसे रिश्तेदारों में फंस, हम भी तो पूरे सुन्न थे  ! 

ज्यादा पढ़े लिखे या मूरख , ज्यादा फर्क नहीं होता, 
दोनों इक जैसे हैं होते , दोनों किसी की न सुनते! 

जग जाहिर था चोर है वो,टोपी पहन के खड़ा हुआ, 
बात थी देश चलाने की तो, कैसे भला उसे चुनते ? 
-------------------------------  तनु थदानी

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