भला दूजे के दुख में,अपनी आंखें, कौन भरता है ?
किसी ने एक बीघे के लिए, भाई गंवा दिया ,
ऐसी क्या है मजबूरी, जो ये सब , करना पड़ता है!
तेरे पद तक, तेरे आगे ओं पीछे, अर्दली होंगे ,
तेरे पद छोड़ते ही, देखना कि, कौन रहता है !
खलल खामोशियों में क्यूं न हो, जब ख्वाहिशें खनके,
हो ग़र ख्वाहिशें ज्यादा, तो मानव, रोज मरता है !
हमारे सब मुखौटे पारदर्शी, हो गयें हैं अब ,
बाहर हो या हो घर, अब संभल के, रहना पड़ता है!
------------------------------ तनु थदानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें