गुरुवार, 8 फ़रवरी 2024

ये कैसा हिंद है

इक सिंध था जो सिंधियों का, इक जहान था  ! 
उस सिंध में दादा जी का भी, इक मकान था  ! 

हमारी जमीन, संस्कृति, मुफत में बांट दी  , 
नेहरू ने सिंधु धार की, परवान काट दी  ! 

अब छुट्टी में, बच्चे कहो, किस गाँव जायेंगे  ? 
अब मिल के कब बैठेंगे, कब खुशियाँ मनायेंगे  ?? 

बच्चों को अब हम सिंधियत पर, क्या बतायेंगे  ? 
गांधी ने दर - बदर किया, क्या ये सुनायेगे  ?? 

पंजाब ओं बंगाल भी, यहाँ वहाँ  गया, 
जो सिंध झूलेलाल का था, वो कहाँ गया  ? 

हम शेर , मगर, राजनीति की भेंट चढ़ गये  , 
सब लाडे लोरियां, वतन के नाम कर गये ं ! 

ख्वाहिश हेमू कलाणी की, बेकार हो गई, 
दाहर सेन वाले सिंध की, जमीन खो गई  ! 

जब बंट रहे थे सब, मिटाये जा रहे थे हम, 
बस राष्ट्र गान में बचे, इस बात का है ग़म  ! 

सर्वप्रथम सभ्यता की, इक गवाह है सिंधु  , 
भारत के सीने रिस रही, इक आह है सिंधु  ! 

सिंधु के बिना गंगा जो, परिपूर्ण नहीं है  , 
तो सिंध के बिना ,ये हिंद पूर्ण नहीं है  ! 

बच्चा जो गुम है भीड़ में, वो मेरा सिंध है, 
न सिंधु, सिंध की जमीं, ये कैसा  हिंद है  ?? 
------------------------  तनु थदानी


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