बात नहीं थी कुछ भी, मसला, खड़ा हो गया !
खून का रिश्ता इकदम चिकना, घडा़ हो गया!
बेटा बिना मशवरे ही सब निर्णय लेता,
खुश ही हो लूं की अब तो वो; बड़ा हो गया!
हो के भी नाराज मैं आखिर कर क्या लूंगा?
दर्द पिता का छलका, घाव, हरा हो गया!
ढलते सूरज ने मुझको औकात बताई,
मुझसे मेरी छाया का कद, बड़ा हो गया!
-------------------------- तनु थदानी