शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

tanu thadani तनु थदानी पैसे क्यूँ कमाते हैं

दरअसल होता यूं है , जब भी हम,पैसे कमाते हैं !
महज़ पैसे  कमा , इज्जत  कमाना , भूल जाते हैं !

हमें बिलकुल न भाती गंदगी ,कचरे की ये दुनियां,
तभी तो खिड़कीयों पे , मोटा सा ,पर्दा लगाते हैं !

खुदा ने बख्शी है खुशबू ,हवा पानी की नेमत जो ,
हम बोतल बंद  में , उन नेमतों  को , बेच आते हैं !

कभी सच सुनना हो मुझसे,तो ठेके आ के ही मिलना,
सभी कहते हैं दारू पी के ही , सच  बड़बड़ाते हैं !

हमारी  दोस्ती  दो  पैग  से , बनती  बिगड़ती  है ,
तभी तो  जिंदगी भर,  जिंदगी को , छटपटाते  हैं !

तेरी जीने की खातिर,  की गई,  चालाकियां प्रपंच,
तुम्हें बस दुःख में ही रहना , तेरी फितरत बताते हैं !

कभी  कब्रों  के  पास  बैठना , औकात  जानोगे ,
बनाते  हैं महल  लेकिन,वही  छे फुट ही  पाते  हैं !

यहाँ  पे  मौत पे  रोना , महज़ इक  रस्म  है  बंधु ,
ओं सीना तान के , हम  आदमी  हैं , ये बताते  हैं !

मेरी ग़ज़लों ने जिसको भी किया ,नंगा, पलट कर के ,
मैं हूं उन जैसा ही , ये कह के वो , दर्पण दिखाते हैं !

हमें  क्या  नींद- चैन- शांति , पैसों  से  मिलती  है ?
समझ में ये  नहीं  आता , कि  पैसे  क्यूँ  कमाते  हैं ??

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