भूखे के लिए रोटी वाला, प्यार बन जाऊँ!
मैं प्यार के दो लफ्ज़ पे, सब कुछ लुटाता हूँ,
पैसों से गर बिक जाऊँ तो , बेकार बन जाऊँ!
पढ़ा लिखा के माँ ने अंत में, बस दी नसीहत कि,
मैं दिल से इक अनाड़ी सा , गँवार बन जाऊँ!
खामोशी के बाज़ार में, मुस्कान गुम हुई,
तो क्यों न मैं खुशी का इक, व्यापार बन जाऊं!
--------------------------------- तनु थदानी
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