उड़ के, यादों के शहर से, इक खुशी सी घर आई!
जद में सफर, के जो थे , तन्हाई के किस्से बने ,
खिल उठे, तुम आ रही हो, जब से ये खबर आई!
मैं भी कश्मकश में था,ओ तू भी कश्मकश में थी,
शर्म भी बेशर्म बन के, गालों पे उभर आई !
प्यार को बेजान शब्दों ,से भला क्या वास्ता ?
प्यार की हर पंक्तियाँ , मुस्कान में नज़र आई !
---------------------------- तनु थदानी
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