एक्खट - दुक्खट लील गया,ये शहर कमीना !
अरी सखी ,न आना,कठिन है यहाँ पे जीना !
चश्मे काले भीतर आंखे , बदन टटोले ,
घर भीतर भी हम आराम से, रहें कभी ना !
तोहरे गाँव मा अबहूं , काका भईया हैं ना ?
शहर ने बीच चौराहे, इ सब रिश्ता छीना !
पेट की खातिर शर्म बिके,तुम समझ रही हो ?
यही शहर की बातें हमको , कभी जमी ना !
------------------- तनु थदानी
अरी सखी ,न आना,कठिन है यहाँ पे जीना !
चश्मे काले भीतर आंखे , बदन टटोले ,
घर भीतर भी हम आराम से, रहें कभी ना !
तोहरे गाँव मा अबहूं , काका भईया हैं ना ?
शहर ने बीच चौराहे, इ सब रिश्ता छीना !
पेट की खातिर शर्म बिके,तुम समझ रही हो ?
यही शहर की बातें हमको , कभी जमी ना !
------------------- तनु थदानी
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