जब कलपूर्जे ही नीयत के ; घिस के रद्दी हो जाते हैं !
चेहरे चिकने या गोरे हो ;वो साफ़ कहाँ रह पाते हैं !
हम कत्लगाह के बाशिंदे ; हम जन्नत - हूर- परी मांगे ;
पर काम किया करते ऐसे ; कि कहने में शरमाते हैं !
अब भले बुरे का पैमाना ; इकदम ही गैरजरुरी है ;
औक़ात यूं नापी जाती है ; कि कितना रोज कमाते हैं !
घर - घर में घातों के परदे ; यूं बड़े सलीके टंगे मिलें ;
ज्यूं नंगे खड़े थे बता रहे ; कि कपड़े पहन नहाते हैं !
मातम पे रोने वाले जब ; ढ़ेरो मिन्नत से हैं आते ;
ऐसे जीवन की शैली पे ; आंखों में आंसू आते हैं !
किडनी -लीवर -आँखें व रक्त ; अब सबके दाम हुए निश्चित;
भोले दिल के नहीं ग्राहक हैं ; बाज़ार के लोग बताते हैं !
------------------------- तनु थदानी
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