रविवार, 22 दिसंबर 2013

Tanu Thadani बचपन मेरे तू लौट आ तनु थदानी

क्यूँ  घूमते, हो  कर  बड़े , अपना अहम्  ले हाथ में !
पिटते रहें, खुद ही से हम, फंसते खुद ही के घात में !

जब कद बढ़ा, तो दिल हमारा,क्यूँ सिकुड़ छोटा हुआ,
सिर को फंसाओ मत अरे , अब दिल की बात बात में !

हम   रौशनी   में  डूब  के , अंधे  बने , होना  ही  था ,
सब लुट गया , जो था जमा , फिर उम्र वाली रात  में !

ब्यापारियों  की नस्ल में , हम आदतन  ही  ढ़ल  रहें ,
क्यूँ  भूलते , कि खुश थे हम, मासूमियत  की जात में !

होटल  गयें  कभी   नहीं , अच्छा   हुआ  गरीब  थें ,
हमने  तो  लूटा  है  मजा , संग मां  के दाल - भात  में !

मुझको बना मालिक, जहाज़ों का ,भले कागज के ही ,
बचपन मेरे  तू  लौट आ  , किलकारियों  के साथ में !

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