बुढापे ने पांव अपना जो,थोड़ा सा फैलाया!
आराम से वो फैल मेरी,शक्ल तक आया!
कहीं छोड़ न देना,कहा,और प्यार भी किया,
उसी ने छोड़ा न कहीं का,मैं, समझ न पाया !
बे अकल भी साबित हुआ, है सोने सा खरा,
बुद्धि की जगह जेब भरी, सबको दिखाया !
रो रो के पूछा हाल जो,हमदर्द बन के फिर,
दिन दूसरे ही,उसने सबको, हँस के बताया!
अपने एकांत को भी, महफूज रखना सीख,
मेल-जोल रफ्ता रफ्ता, मोल-भाव तक आया!
------------------------------तनु थदानी
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