सोमवार, 27 मई 2024

जब ग्लेशियर आवेग का, बिस्तर पे पिघलता!

जब ग्लेशियर आवेग का, बिस्तर पे पिघलता! 
सिरहाने दुबका प्रेम तो बस, हाथ है मलता  ! 

बेहद उथल पुथल है, इक पागल सा शोर है, 
आवेग और खुमार में, क्या प्यार है पलता  ? 

ना  घटता न बढ़ता ,यही है सच का तक़ाज़ा  ! 
रबड़ सा झूठ है होता, सदा आकार बदलता  ! 

हमारे पास शिद्दत के सिवा कुछ भी नहीं यारों, 
सिवाय हौसले के संग मेरे, कोई न चलता  ! 

वैसे तो तुम भी आदमी, मेरी तरह हो दोस्त, 
व्यवहार में है ओहदे का , संग बस खलता  ! 
----------------------- तनु थदानी



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