जब ग्लेशियर आवेग का, बिस्तर पे पिघलता!
सिरहाने दुबका प्रेम तो बस, हाथ है मलता !
बेहद उथल पुथल है, इक पागल सा शोर है,
आवेग और खुमार में, क्या प्यार है पलता ?
ना घटता न बढ़ता ,यही है सच का तक़ाज़ा !
रबड़ सा झूठ है होता, सदा आकार बदलता !
हमारे पास शिद्दत के सिवा कुछ भी नहीं यारों,
सिवाय हौसले के संग मेरे, कोई न चलता !
वैसे तो तुम भी आदमी, मेरी तरह हो दोस्त,
व्यवहार में है ओहदे का , संग बस खलता !
----------------------- तनु थदानी