रविवार, 22 अप्रैल 2012

"माँ उसकी जी सके सुकूं से" hey eshwar-3 {tanu thadani} हे ईश्वर- 3 { तनु थदानी }





यहाँ  तो  देह-सुख  ही  जिन्दगी  का , मर्म हो गया !
जली   सब   भावनायें ,  देह - मुद्दा   गर्म   हो गया! 


नज़र  के  सामने  ही जब  हया  की,अर्थियां गुजरी,
तभी से मुहं छिपाना  खुद से ,उसका  धर्म  हो  गया !


वो इतनी जिल्लतों के बाद  भी,जिन्दा  रहा क्यूँ की ,
माँ उसकी   जी  सके  सुकूं से , सो  बे-शर्म  हो गया !


किसी  रद्दी  तरह  बढ़ता   रहा  , अम्बार  उम्र  का ,
तभी  तो  वक्त   काटना  भी , आज  कर्म  हो  गया ! 


अभी बस  कल ही तो रोते  हुए  के , आंसू  थे  पोछे ,
तभी   से  हाथ   मेरा  खुरदुरा  था ,  नर्म   हो  गया !

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