सोमवार, 23 अप्रैल 2012

"प्रेमी हूँ ईश्वर का" hey eshwar-3 हे ईश्वर -3 { तनु थदानी }



सोचो  सिकंदर  इस  जहाँ   में ,  लूट  क्या  पाया  ?
सबकी तरह जाते  समय बस, इक कफ़न  पाया  !

नौटंकियों   के   बीच   खेला ,  खेल   कृपा    का ,
अपनी जरुरत  भर  का  इक , भगवान्  बनाया !

मैंने   बड़े   करीब   से  , देखा   है    इक   पतन ,
कि भूख  में खुद  का किसी  ने ,मांस  था  खाया !

जिसने मुझे जो कुछ दिया,सब कुछ दिया लौटा,
गाली  हो या इज्ज़त मैं ,कुछ  रख  नहीं  पाया  !

मैं  क्यूँ   करूँ  श्रृंगार , जो,  प्रेमी  हूँ  ईश्वर   का , 
बस चाहिए  उसको ह्रदय , न  काया  न   माया !

माँ  शब्द  ही  मिले  नहीं , पावन  कोई    तुमसे ,
बस  इसलिए तुझ पे मैं  ग़ज़ल ,लिख नहीं पाया ! 
   

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