सोमवार, 31 मार्च 2025

लोग आते रहे, लोग जाते रहे

लोग आते रहे, लोग जाते रहे, कुछ पी के यहाँ लड़खड़ाते रहे!
हम इंसा हैं वाकिफ है, पर आदतन, खुद को हिंदु ओं मुस्लिम, बताते रहे!


अदा पे फिदा है, ये सारा जहां, असल में मोहब्बत, न करता कोई,
हम गुथ के जो बैठे,इक मतलब से ही, तो इसी को मोहब्बत बताते रहे!

जब भी अंधों ने मांगी है लाठी तो हम, बहाने किये कि, न देनी पड़े,
हमने अभिनय किया कि, हैं लंगड़े जो हम, सो अंधों के आगे, लंगड़ाते रहे!

ये बाबू ये साहेब जो तनख्वाह लेते, वो होती है आफिस में आने की बस,
काम करने का लेते हैं रुपया हमसे, हम भरते रहें, वो भराते रहे !


हस्ती बुलबुला, पर ठसक न पूछो, भूल के हम हैं यात्री, रहे ठाठ से,
भूकंपो सैलाबों के,साये में भी, इस धरती पे खुद को, चराते रहे !
  ------------------------- तनु थदानी




बुधवार, 26 मार्च 2025

मैं भी पागल तू भी पागल

हरा मले तू, मलुं मैं  भगवा,दिन पूरा ही इसमें बीते!
मैं भी नंगा तू भी नंगा, जरुरत नहीं कि कपड़े सीते!

हिंदू मुस्लिम रहे मरण तक, भूल के ये हम इंसा भी थे,
मैं जादूगर तुम जादूगर, बिना आत्मा दोनों जीते!

झरनों की कलकल से ले के, गुल में हवा में प्रेम है बहता 
मैं भी मुर्दा तू भी मुर्दा, प्रेम का रस  हम   कैसे पीते!

वोट दिया कि, सेवक बन वो, काम करेगा लेकिन देखो
मैं भी पागल तू भी पागल, काट रहा वो हमरे फीते!

गांठ अगर दिल में पड़ जाये

गांठ अगर दिल में पड़ जाये, गांठ को खोलो धीरे धीरे!
कोलाहल थम जाने दो फिर, बात तुम बोलो धीरे धीरे!

दिल की धड़कन मस्त प्रकृति,प्यार दिया,परिवार दिया,
ईश्वर तुमको सब कुछ देगा, सब कुछ ही लो धीरे धीरे!

धर्मों के कीचड़ से ले कर, नफरत के जहरीले नाले,
तुम छींटो की जद में खुद हो,घोला यहाँ जो धीरे धीरे!

सदियों से जो हिन्दू मुस्लिम,बने हैं हम, जनम से लेकिन,
नयी सदी में नये बनो ओं ,  इंसा हो लो धीरे धीरे !
----------------------------------  तनु थदानी



लकीर के फकीर जैसे,जस के ही तस थे!


लकीर के फकीर जैसे,जस के ही तस थे!
हम में ये कीड़े  धर्म के, यूँ ही नहीं बसते !

कोई तो नशा है यहाँ, घंटो, अजानों में,
वरना तो इन आवाजों में,न बेवजह फसते!

है गम की गंदगी यहाँ, हर गाल हर गली,
जिंदा हैं इस बात पे, हम क्यूं नहीं हसते?

आया अभी तेरे शहर , पर अजनबी नहीं,
हूँ नाप चुका  शहर  ,तिरी आंखों के रस्ते !

मजबूर के हालात से, व्यापार न करना,
आंसु किसी मजलूम के, होते नहीं सस्ते!
-------------------------- तनु थदानी




शुक्रवार, 7 मार्च 2025

गले से लग के धोखे से,जो मैने धोखा खाया है !

गले से लग के, धोखे से,जो मैने, धोखा खाया है !
धड़कते दिल को भी मैंने, तभी पत्थर बनाया है!

दुनियां से,विदा होने में हो, बस इतनी आसानी,
कि जितनी तू ने, आसानी से,मुझको भुलाया है!

जो मैं जज्ब था ख्वाबों में तेरे, खुद को भुला के ,
साबित करुं तो कैसे, तुमसे, दिल लगाया है!

तू मेरी धड़कनो में,सांस की,रफ्तार को न गिन,
जो पूछे कौन आया है, मैं बोलूं मौन आया है !

कभी बातें सुनो अंतस की, कबूल कर भी लो,
दिमागी सोच ने,दिल को हमारे, बस नचाया है!

जो तेरा था, गया नहीं, गया जो,था  नहीं तेरा,
यही जीने के जिक्र में ,किसी ने,सच बताया  है!