लोग आते रहे, लोग जाते रहे, कुछ पी के यहाँ लड़खड़ाते रहे!
हम इंसा हैं वाकिफ है, पर आदतन, खुद को हिंदु ओं मुस्लिम, बताते रहे!
अदा पे फिदा है, ये सारा जहां, असल में मोहब्बत, न करता कोई,
हम गुथ के जो बैठे,इक मतलब से ही, तो इसी को मोहब्बत बताते रहे!
जब भी अंधों ने मांगी है लाठी तो हम, बहाने किये कि, न देनी पड़े,
हमने अभिनय किया कि, हैं लंगड़े जो हम, सो अंधों के आगे, लंगड़ाते रहे!
ये बाबू ये साहेब जो तनख्वाह लेते, वो होती है आफिस में आने की बस,
काम करने का लेते हैं रुपया हमसे, हम भरते रहें, वो भराते रहे !
हस्ती बुलबुला, पर ठसक न पूछो, भूल के हम हैं यात्री, रहे ठाठ से,
भूकंपो सैलाबों के,साये में भी, इस धरती पे खुद को, चराते रहे !
------------------------- तनु थदानी