लकीर के फकीर जैसे,जस के ही तस थे!
हम में ये कीड़े धर्म के, यूँ ही नहीं बसते !
कोई तो नशा है यहाँ, घंटो, अजानों में,
वरना तो इन आवाजों में,न बेवजह फसते!
है गम की गंदगी यहाँ, हर गाल हर गली,
जिंदा हैं इस बात पे, हम क्यूं नहीं हसते?
हूँ नाप चुका शहर ,तिरी आंखों के रस्ते !
मजबूर के हालात से, व्यापार न करना,
आंसु किसी मजलूम के, होते नहीं सस्ते!
-------------------------- तनु थदानी
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