जो वक्त ने पढ़ाया , मास्टर जी क्या पढ़ाते !
जीवन गुजारा हमने , धोते- नहाते- खाते !
धरती पे सबका जीवन, शायद हसीन होता ,
तमीज से ही हम जो , पहचाने अगर जाते !
गंर आईने में अपना, जो चित्र नहीं दिखता ,
केवल चरित्र दिखता , तो हम भी सुधर जाते !
हम जानवर हैं कैसे , कि पेट के लिये ही ,
रब का दिया वो तोहफा , ईमान बेच आते !
हम सभ्यता के आशिक, मंगल व चाँद छाने ,
जो दिल हमारे पास , उसे भूल भूल जाते !
माँ सच है, पिता सच है , भाई बहन भी सच है ,
वो मौत भी तो सच है , हम क्यूँ हैं भूल जाते ?
पत्थर जमा किये क्यूँ ? कंकर जमा किये क्यूँ ??
इक उम्र है गुजरती , ये अक्ल आते आते !
जीवन गुजारा हमने , धोते- नहाते- खाते !
धरती पे सबका जीवन, शायद हसीन होता ,
तमीज से ही हम जो , पहचाने अगर जाते !
गंर आईने में अपना, जो चित्र नहीं दिखता ,
केवल चरित्र दिखता , तो हम भी सुधर जाते !
हम जानवर हैं कैसे , कि पेट के लिये ही ,
रब का दिया वो तोहफा , ईमान बेच आते !
हम सभ्यता के आशिक, मंगल व चाँद छाने ,
जो दिल हमारे पास , उसे भूल भूल जाते !
माँ सच है, पिता सच है , भाई बहन भी सच है ,
वो मौत भी तो सच है , हम क्यूँ हैं भूल जाते ?
पत्थर जमा किये क्यूँ ? कंकर जमा किये क्यूँ ??
इक उम्र है गुजरती , ये अक्ल आते आते !
-------------------------------- तनु थदानी
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