मिट्टी के खिलौने, मिट्टी का घरौंदा, फिर मिट्टी में विश्राम!
ओढ़ के रुआब, जागते ले ख्वाब, ख्वाहिश बेहिसाब,
बेवजह ठसक, बेवजह कसक, अंततः हे राम !
दौड़ के लूटा, लुटा इस दौर में, हम सब हैं लुटेरे,
दौलत भी की जमा, फिर इश्क भी जमा,पर खो गया आराम !
इतनी थी फुटानी, इतने थे हम ज्ञानी,इतना ही था रुतबा,
इधर गिरा चरित्र, छूट गये मित्र,तो हो गये बे- दाम !
--------------------------------------- तनु थदानी
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