सोमवार, 13 मई 2013

tanu thadani तनु थदानी. जो उसकी बात वाजिब थी नहीं

हमें मिलता है बस उतना,वो जितना छोड़ देता है !
प्रजा   के  तंत्र   में  नेता  , प्रजा  को  तोड़  देता  है  !

हमीं  ने चुन के  भेजा सो , हमें चुपचाप  है  सुनना ,
वो  खुल्लेआम चुन-चुन  गालियाँ , बेजोड़  देता  है !  

हम  सीधी  बात  जब  उससे,हमारी भूख की करते ,
हमें  सीधे   ही  वो  आतंक  से   ही , जोड़  देता  है !

हमारी  बात  संसद -सत्र  में , खुल    नहीं  पाती ,
हमारी  बात को   इतने  तहों   तक , मोड़  देता  है ! 

जो उसकी बात वाजिब थी नहीं,वो इसलिये अक्सर ,
झगड़ता,कुछ  नहीं  सुनता,महज  इक  शोर  देता  है !

हमारा  दर्द  इक   सा  है  मगर , वो  डाक्टर  देखो , 
उसे  कुछ  और  देता  है  , मुझे  कुछ  और  देता  है !

बुतों  को  तोड़  के भी वो , मुसलमां  बन नहीं  पाया ,
वो  काफिर  बात  में  ईमान  को  जो , छोड़  देता  है !    



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