शनिवार, 4 मई 2013

चलो जगाओ खुद कोtanu thadaniहे ईश्वर -3 तनु थदानी





ग़ज़ल 
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हमने  सारा  शहर  बसाया ,बिल्डिंग - नाले - रोड  बनायें  !
मगर  प्रश्न  ये  रहा  अधूरा , आम  आदमी  कैसे   खाये  ? 

जंगल ने दी कुर्बानी , फिर  हम  क्यूँ   जंगली  बन बैठे  हैं ,
कॉलोनी  ने  खेत  चबायें  , कैसे  शहर  की   भूख  मिटायें ?

सीमाओं  की हलचल  से  है , हमें  भला  क्या  लेना - देना ,
हमें  हमारी  नींद  है  प्यारी , बेशक  कोई  आये-  जाये  !

किस्मत  से मानव तन पाया,किस्मत  से ये देश भी पाया ,
सब  पा जाते किस्मत से फिर,मेहनत से क्यूँ काम  बनायें ?

कहते  हैं  भगवान  मिलेगा , इसीलिये  हर गली-गली  में ,
कोई   घंटा   बजा  रहा  है , कोई  ख़ुदा - ख़ुदा  चिल्लाये  !

ज्यों ये घोषित किया की कुछ भी ,बिना परिश्रम नहीं मिलेगा ,
धर्म   के  ठेकेदारों  को ये , फूटी  आँख  सा जरा  ना  भाये !

चलो जगाओ खुद को ,आँखे , खोल  के  देखो  सपने  सारे ,
फल  हेतु  ही  कार्य  को  करना , गीता  का  अध्याय  बनायें !











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