बुधवार, 15 अक्तूबर 2014

tanu thadani तनु थदानी.थोड़ी तो शर्म दो ना

जन्नत को घर में टांका ,रब तू बना जो धागा !
तू माँ  में  मेरी  दिखता , ये  सोने  पे  सुहागा !

ये  नाम  के  मसले  पे , क्यूँ  लोग हैं झगड़तें ,
मैंने  तो  जो  भी मांगा , बस हाथ जोड़ माँगा !

चालाकियों  में  अपनी , हम  दर्ज  तुझे करते ,
हमसे कहीं है बेहतर,  वो काला काला कागा !

भजनों की लय न जानु, नमाज  वजू क्या है ?
वो पल दीवाली ईद है , जब नींद से मैं जागा !

न  बैट्री  न  बिजली , फिर भी है हम में ऊर्जा ,
तेरा  ही  करिश्मा  ये , जो  बूझा न, अभागा !

हर  साँस से तू आता , हर साँस से तू जाता ,
फिर भी युगों -युगों से तुझे खोजते हैं गा गा !

मंदिर हो या हो मस्जिद, या चर्च, सब हैं मंडी ,
तू रोज वहाँ बिकता , सालों  से  बिना नागा !

हमें शर्म क्यूँ न आती ? थोड़ी तो  शर्म दो ना ,
तुझको  ही  बेच  खाते , ये कैसा रोग लागा ??  

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