रविवार, 23 मार्च 2014

tanu thadani हम खुद से ही शुरुआत आखिर क्यूँ नहीं करते तनु थदानी


क्या  कहूँ  कि  कैसा  मैंने , ऐब  पाला है !
 हर ग़ज़ल में मैंने अपना ,दिल निकाला है !

मैं  परेशां  था कि मुझको , दिख नहीं रहा ,
क्यूँ समझ आया नहीं , चश्मा ही काला है !

कुछ  नहीं  अब  स्वाद, जिंदगी में आ रहा ,
मुँहलगा  सा  मुँह  में मेरे , एक  छाला  है !

घर  समाजवादियों  का ,  देख  मैं  हैरान,
समाजवाद ए टी एम सा , कर जो डाला है !

गिध्द ने रो कर कहा ,संसद में ,कि उसका,
देश  के  नेताओं  ने  ,  छीना  निवाला  है !

हो रही जो कम गरीबी , क्यूँ नहीं दिखती ?
सरकार के रिकार्ड में कुछ, गड़बड़झाला है !

रुपये कमाये तीस तो , सरकार चिल्लाई,
वो  कहाँ  गरीब , वो  तो , भेष  वाला  है !

सरकार बदलने से होगा , कुछ नहीं यहाँ ,
हम  दिलों  से सड़  चुके , ज़ुबां पे ताला है !

हम खुद ही से शुरुआत,आखिर क्यूँ नहीं करते ?
क्या  कोसने  से  दूसरा ,  सुधरने  वाला है ??.

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