गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

tanu thadani तनु थदानी अमीरी देख बच्चे की

बिना माँ के कोई भी घर ; कभी भी घर न कहलाता !
समझते गंर जो शहरी ; कोई वृद्ध आश्रम न बनवाता !


शहर की रौशनी में ; शक्ल सबकी ; यूं हुई रौशन ;
सभी इतने चमकते हैं ; कि कुछ भी दिख नहीं पाता !


वो मिट्टी खेत की खातिर ; महज़ मकान की खातिर ;
करोड़ों सुख भरा जीवन ; यूं ही लड़ के गुजर जाता !


हमें सिलने जो आते ; अपने अपने धैर्य के टुकड़े ;
तो हम नंगों के खातिर ; खुशियों का ; कुर्ता भी बन पाता !


बहन ने भेजी राखी ; हैसियत ; भाई की तौल कर ;
गरीबी जलजले सी है ; कि रिश्ता टूट है जाता !


अमीरी ये नहीं साहब ; कि तेरे लाख खर्चे हैं ;
अमीरी देख बच्चे की ; वो तो कुछ भी न बचाता !
----------------------- तनु थदानी

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