है निमंत्रण आ के लूटो , मैने धर के रक्खे हैं !
जिन्दगी में आ के मेरी , देख तो तेरे लिए ही ,
पल ख़ुशी के इस जहाँ से ,मैने लड़ के रक्खे हैं !
तुम इसे गर प्यार मानो , सब हैं तेरे वास्ते ,
प्रार्थना के पात्र में , जज्बात भर के रक्खे हैं !
आँख ने मुझको उड़ाया , स्वप्न की पतंग पे ,
पैर हैं कि अब तलक, धरती पकड़ के रक्खे हैं !
अजीब हूँ मैं आदमी , हँसता दुखों के दरम्यां ,
मुस्कान में ही गम तमाम,जज्ब कर के रक्खे हैं !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें