मैने तो यूँ कहा नहीं , तू जिस तरह जिया !
खरीद - बेच क्या रहा , सम्पूर्ण जीवन में ,
सब छोड़ के आएगा फिर ,पूछूंगा क्या किया ?
जो मुफ्त में मैने दिया , तुमको नहीं कदर ,
सुख के लिए मशीन से , क्या -क्या बना लिया !
दिन चार दिये कोख से ,आने को कब्र तक ,
इतना ही नहीं प्यार का , रस्ता भी था दिया !
क्यूँ रास्ता वो छोड़ कर , भटका गली - गली ,
अमृत को छोड़ क्यूँ भला , अपना लहू पीया?
बेशक तुम्हे बना के मैं , खुद ही परेशां हूँ ,
सब लड़ मरे मेरे लिए , कोई नहीं जीया !
heyeshwar.blogspot.com/.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें