तुम्हे घायल न कर दें शब्द , सो मैं चुप ही रहता हूँ !
मेरी मासूमियत रौंदी तुम्ही ने , सच मैं कहता हूँ !
नहीं मांगा कभी भी प्यार , क्यूँ कि जानता हूँ मैं ,
तुम्हे है प्यार जिस्मों से , मैं तो रूहों में बहता हूँ !
मेरी माँ को नहीं कहना , वो मर जायेगी जीते जी ,
कि अपने ख्वाब की उंचाइयों से , रोज ढहता हूँ !
तुम् ही कातिल हो मेरी हर ख़ुशी की ,जानती हो तुम ,
मगर कोई शिकायत के बगैर , चुपचाप सहता हूँ !
वो इक दिन यूं भी आयेगा ,करोगी खुद घृणा खुद से ,
तुम्हारे हश्र पर पगला मैं आखिर , क्यूँ सहमता हूँ ?
मैं चुप्पी ढो के ढहता , फिर सहमता ,साथ हूँ रहता ,
तुम्हे न प्यार हो मुझसे, मगर मैं प्यार करता हूँ !
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