मैने भी महफ़िल थी मांगी , माँगा इक बाग़ महकता सा !
इक ख्वाब मिला आवारा सा ,दिल पाया एक भटकता सा !
वो खूं से लथपथ शै जिसको, बेकार समझ छोड़ा तुमने ,
सीने से लगा कर रक्खा था ,वो दिल था एक धड़कता सा !
वो मालिक है सब देखता है , करतूत हमारी बुद्धि की ,
हम अक्सर छिपा जो जाते हैं,सिर भीतर कुछ-कुछ पकता सा !
अल्लाह ने किया कुबूल मगर ,बन्दों ने पागल कह मारा ,
जो इश्क खुदा से मैने किया,दिल खोल के यार फड़कता सा !
तुम ढूढो पूरी शिद्दत से , वो तुमको भी मिल जाएगा ,
जो इंसा भीतर बच्चा है , ओं पंक्षी एक चहकता सा !
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