तमाम उम्र मैं रिश्तों की , कसौटी पे कसा हूँ !
मेरी खुशियाँ गई कतरा , मैं गोया एक नशा हूँ !
मैं सांझा कर रहा जज्बात ,कोई मर्म तो समझे ,
बड़ी ही मार्मिक पड़ताल की ,गलियों में फंसा हूँ !
मुझे ईश्वर ने भेजा ,खोल के दिल ,ये जहां जिऊ ,
मगर मैं नागफनियों से भरे ,इक घर में बसा हूँ !
तुम्हारी चीज़ हे ईश्वर, जो ली वापस हमीं से तो,
सभी रोये दिनों तक थें ,मगर इक मैं ही हँसा हूँ !
तुम्हारे खेल के कायदे -नियम ,सब जान हे ईश्वर ,
यहाँ न जीत है ना हार है , फिर भी क्यूँ फंसा हूँ ?
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