रब ने रचाया खेल ये ,रिश्ते हमे दे के !
संभालते हैं यूँ की मुर्गी ,अण्डों को सेके!
कैसे उगे हैं दिल पे ये ,शिकवों के बगीचे ,
किसने शकों के बीज ,इतने यहाँ फेंके ?
मैं दूर हूँ घर से मगर ,हर इक से जुड़ा हूँ ,
बस आउंगा प्यारे शहर,खुशियाँ नई ले के !
किसने कहा कि कोई मुझे ,प्यार ना करता ,
इक बार मेरी माँ से कोई ,पूछ के देखे !
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