तू मेरा गर हो ना सकता , तेरा ही हो जाऊं मैं !
हे ईश्वर क्या करूँ जतन कि,तुझको खुद में पाऊं मैं !
तुमने भूख को टांग दिया है ,इंसानों कि आदत पे ,
भूख लगी पर जूठे हैं फल , कैसे इनको खाऊं मैं !
रूप-रंग की भीड़ जमा है , प्रलोभन के चौराहे ,
चारो ओर है जाता रस्ता , किस रस्ते से आऊं मैं ?
खुद मेरी छाया ने मुझको ,इतने थप्पड़ मारे की ,
तन से मन तक बना मैं पत्थर,हिल भी अब न पाऊं मैं !
मेरी आँखों ने जो देखा ,वफ़ा का कत्ले-आम यहाँ ,
तुझसे ही क्यूँ प्रेम करूँ ना ,क्यूँ दिल को भटकाऊ मैं ?
प्यार है मिथ्या ,वादा मिथ्या ,मिथ्या सातों फेरे हैं ,
अगर हूँ तेरा अंश तो क्यूँ ना ,तुझमें ही रम जाऊं मैं!
shandar rachan aapki
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