गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

तुझसे ही क्यूँ प्रेम करूँ ना hey eshwar-3 (tanu thadani) हे ईश्वर -3 { तनु थदानी }

तू   मेरा  गर  हो  ना  सकता  , तेरा  ही  हो  जाऊं   मैं  !
हे ईश्वर क्या  करूँ जतन कि,तुझको  खुद  में पाऊं  मैं !

तुमने  भूख  को  टांग  दिया  है ,इंसानों  कि आदत  पे ,
भूख लगी  पर  जूठे  हैं  फल , कैसे   इनको  खाऊं  मैं !

रूप-रंग  की   भीड़  जमा   है ,  प्रलोभन  के   चौराहे  ,
चारो  ओर है जाता  रस्ता , किस  रस्ते   से  आऊं  मैं ?

खुद  मेरी  छाया  ने  मुझको  ,इतने  थप्पड़  मारे  की ,
तन से मन तक बना मैं पत्थर,हिल भी अब न पाऊं मैं !

मेरी आँखों ने  जो  देखा ,वफ़ा  का  कत्ले-आम  यहाँ ,
तुझसे  ही  क्यूँ  प्रेम करूँ ना ,क्यूँ दिल को भटकाऊ मैं ?  

प्यार  है  मिथ्या ,वादा  मिथ्या ,मिथ्या  सातों  फेरे  हैं ,
अगर  हूँ तेरा अंश तो क्यूँ  ना ,तुझमें  ही  रम जाऊं मैं!






1 टिप्पणी: