जो हमने गलतियाँ खोजी , तो वो गुस्से से हैं भरे !
उसे क्यूँ हम खिलाएं , जो हमारी काटते जड़ें !
बहुत आहत हुआ जनतंत्र , मेरे देश में आ कर ,
सभाओं में किया जाता है नंगा , शौंक से बड़े !
जिन्होंने कल सदन के ,सीने चढ़ के, जूते-बाजी की ,
उन्हे बे-शर्म कह के हम , सदन में दोषी बन खडे !
सुना करते थे कि उस वृक्ष तले , गुंडे थे रुकते,
कटा वो वृक्ष ,बनी संसद ,कि हम तो फिर भी हैं डरें !
समूचे देश में विज्ञापनों में , कुछ तो गलत है ,
हमारे मौन में ही " हाँ" है शामिल , किससे जा लड़े?
कहीं भी है अगर ईश्वर , मुझे बस इतना बता दे ,
कि पानी आँख में गर ,हो ना ,शरम का तो क्या करे ??
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