मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

हमें चाहिए शीतलता hey eshwar-3 (tanu thadani) हे ईश्वर -3 { तनु थदानी },


हे  ईश्वर  ये पेट दिया क्यूँ ,जो ना कभी भर पाता है ?
पूरी उम्र ही भूख  लिए , अपनी खातिर  नचवाता है !


रस से भरे जहां  में रस  से , रह जाता  है  वंचित वो ,
मन ओं पेट के चक्रव्यूह में ,फंस कर जो रह जाता है !


चुप्पी  वाले  एक खजाने , उपर  बैठा  मार कुंडली ,
नाग के जैसा मन ये मेरा ,मुझको  ही डंस जाता है !


छल के मेले घूम खरीदें ,मन ने मेरे दुःख के सामां,
शातिर मन भी जब है थकता ,माँ की गोद में आता है !


द्वारे - द्वारे  द्वेष दिखा ओं , रस्ते - रस्ते  रोष  यहाँ ,
पता नहीं ये जीवन- रस्ता , कब कैसे कट जाता है !


हमें चाहिए शीतलता ,जो, मन की अगन पे लेप करे ,
ठन्डे रिश्तों बीच मुसाफिर,झुलस-झुलस जल जाता है !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें