हे ईश्वर ये पेट दिया क्यूँ ,जो ना कभी भर पाता है ?
पूरी उम्र ही भूख लिए , अपनी खातिर नचवाता है !
रस से भरे जहां में रस से , रह जाता है वंचित वो ,
मन ओं पेट के चक्रव्यूह में ,फंस कर जो रह जाता है !
चुप्पी वाले एक खजाने , उपर बैठा मार कुंडली ,
नाग के जैसा मन ये मेरा ,मुझको ही डंस जाता है !
छल के मेले घूम खरीदें ,मन ने मेरे दुःख के सामां,
शातिर मन भी जब है थकता ,माँ की गोद में आता है !
द्वारे - द्वारे द्वेष दिखा ओं , रस्ते - रस्ते रोष यहाँ ,
पता नहीं ये जीवन- रस्ता , कब कैसे कट जाता है !
हमें चाहिए शीतलता ,जो, मन की अगन पे लेप करे ,
ठन्डे रिश्तों बीच मुसाफिर,झुलस-झुलस जल जाता है !
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