कोई जो गलतियां ढूंढे , उसे तुम दोस्त कर लेना !
कि पर्दा जो करे उस पर , ऐसे मित्रों से लड़ लेना !
तुम्हारे भाई- बहन -माँ - पिता , सब लोग हो जहाँ ,
हो चाहे दूर बस्ती में , मगर ऐसा ही घर लेना !
अगर रूठे तुम्हारा प्रिय , चाहे गलतियां कर के ,
झगड़ना रस्म सा ,ओं फिर उसे , बाहों में भर लेना !
तमाम उम्र फल खुशियों के ,मिलते जायेंगे तुमको ,
मेरा है मशवरा , ईश्वर से ,मुस्कानों कि जड़ लेना !
जीवन को जीये कैसे , बिना तकलीफ - दर्दों के ,
अगर हो जानना बन्धु , मेरी किताब पढ़ लेना !
वाह , प्यारी ग़ज़ल है . और क्या संयोग है की 'रदीफ़' मिल रही है मेरी नयी गज़ल से ....
जवाब देंहटाएंअति उत्तम विचार।
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