काश जिन्दगी ऐसी होती , जहाँ मैं खुद के साथ भी होता !
होता किसी की आँखों मे तब , नींद ले अपनी चैन से सोता !
इच्छाएं हथियार बनी , फिर , घायल मुझको कर डाला , तो,
किससे फिर मैं करूँ शिकायत , आगे किसके रोना रोता ?
अंगना ओढे धूप मिला तो , कमरे छायादार मिलें , फिर ,
दिल है करता ,खुद को खुद के ,घर में आने का दूँ न्योता !
यूँ ना हो कि घर आते ही , बनु अजनबी अपने घर में ,
रिश्ते अब ब्यापार से बनते , ब्यापारों में छल भी होता !
छम-छम करती नन्ही बिटिया ,लिपट जो मुझसे हंसती- रोती,
मैं खुद को सम्पूर्ण भी पाता , अगर नहीं ये सपना होता !
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