छिपाता हूँ मैं जख्मो को ,ये आंसू बोल जाते हैं !
मेरे अन्दर की पीड़ा के ,वो किस्से खोल जाते हैं !
जो मैने माँ को बताया मैं खुश हूँ ,चिंता न कर तू ,
मेरी माँ रो पड़ी ,बोली की, स्वर क्यूँ कंपकपाते हैं ?
उन्हें तो दुःख से मेरे है नहीं ,कुछ लेना या देना ,
मगर वो आदतन उन घाव में , ऊँगली लगाते हैं !
मुझे बदनाम करने के तरीके , दोस्तों के ये -
मैं पहले आदमी अच्छा था , सबको ये बताते हैं !
यहीं इस उम्र के जंगल में ,हमने खोया जो बचपन,
कि पूरी उम्र काटी पर , उसे ना खोज पातें हैं !
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